महापंडित राहुल सांकृत्यायन की कालजयी कृति
समुद्र की रोमांचक कथा-यात्रा : निराले हीरे की खोज
महान घुमक्कड़स्वामी, महापंडित राहुल सांकृत्यायन को एक पुरातत्ववेत्ता, चिंतक-विचारक, इतिहासकार, बौद्ध धर्म-दर्शन के व्याख्याकार एवं उपन्यासकार-कथाकार के रूप में जाना जाता है। यह सत्य है कि उन्होने रूस, जापान, चीन, तिब्बत आदि देशों की यात्राएँ कीं और उन यात्राओं के माध्यम से प्राप्त किये हुए ज्ञान ने उन्हें ज्ञान की इन तमाम विधाओं का महारथी बना दिया। उन्होने अपनी यात्राओं का भी बड़ा रोचक वर्णन करके यात्रा-वृत्तांत और यात्रा-साहित्य की विधा को भी साहित्य जगत् में स्थापित करने का बड़ा महत्वपूर्ण कार्य किया है। यह यात्राएँ प्रायः मैदानी और पठारी-पहाड़ी इलाकों की हैं, बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि राहुल सांकृत्यायन ने समुद्री यात्राओं के रोमांच और रहस्य को भी अपने यात्रा-वृत्तांत में शामिल किया है।
समुद्र और समुद्री यात्राएँ अनादि काल से ही मानव के लिए रहस्य और रोमांच का हिस्सा रही हैं। राहुल सांकृत्यायन जैसा बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्तित्व इस रोमांच से अछूता रह जाए, यह संभव नहीं था। इसी कारण उन्होने अपनी पुस्तक निराले हीरे की खोज में समुद्र को, समुद्र के रोमांच को इतनी बारीकी से उतारा है कि हक़ीकत और कल्पना के बीच अंतर करना ही कठिन हो जाता है।
राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक निराले हीरे की खोज में बीस उपशीर्षक हैं, जिनमें समुद्र की यात्राओं से जुड़ी बीस अलग-अलग घटनाएँ हैं, जिन्हें पार करते हुए निराले हीरे की खोज पूरी हो जाती है। पुस्तक का पहला उपशीर्षक ही समुद्र का उपद्रव है, जो समुद्र में उठने वाली भीषण समुद्री हवाओं के कारण यात्रा की शुरुआत को ही संकटग्रस्त कर देता है। किंतु समुद्री यात्री हरिकृष्ण, मोहन और विक्रम उससे बच निकलते हैं। इसी तरह यात्रा आगे चलती रहती है। यात्रा के अलग-अलग पड़ावों के रूप में किताब में बने उपशीर्षक भी बड़े मजेदार और आकर्षक हैं, जैसे- रेतीली खाड़ी में दो स्टीमर, महागर्त का तल, बँगले वाला आदमी, कप्तान का संदेश, भयंकर बुलबुला, मुर्दों की गुफा, मोहनस्वरूप का भूत, शैतान की आँख, पुष्पक का अंत और जल भित्तिका आदि।
ये उपशीर्षक भी अपने अंदर छिपे रहस्य-रोमांच में पाठकों को खींच लेते हैं। इन्हीं में बँधकर अद्भुत समुद्री-यात्रा का आनंद प्राप्त होता है। इसके साथ ही आपसी सूझ-बूझ, समझदारी, तुरंत निर्णय लेने की शक्ति, समन्वय और एक साथ कार्य करने की भावना जैसी नसीहतें सहजता से ही सीखने को मिल जाती हैं। राहुल सांकृत्यायन की दूरदर्शिता भी समुद्री यात्राओं में प्रकट होती है। उन्होने समुद्र के जीवन के हर एक पक्ष को इस तरह से और बड़ी बारीकी के साथ उतारा है, जैसे वे समुद्री यात्राओं के विशेषज्ञ हों। कहीं पर भी कोई कमी छूट गई हो, ऐसा भी प्रतीत नहीं होता है।
निराले हीरे की खोज में चलने वाली समुद्री यात्रा का आखिरी पड़ाव आँख के जानकार के रूप में आता है। इसी पड़ाव में ब्राज़ील की राजधानी रियो-दि-जेनेरो में पहुँचकर समुद्री यात्रियों हरिकृष्ण, मोहनस्वरूप और उनके साथियों को वह निराला हीरा देखने को मिलता है। वह निराला हीरा विश्व के तमाम प्रसिद्ध हीरों से अलग किस्म का है। संसार के कई बड़े हीरों से भी बड़ा हीरा खोज लिया जाता है। यह हीरा कोहनूर हीरे से और मुगले आजम हीरे से भी ज्यादा वजनी है, इसका वजन 300 कैरेट है।
इस प्रकार निराले हीरे की खोज पूरी हो जाती है। यदि विश्व साहित्य पर एक नज़र डालें तो लगभग हर भाषा के साहित्य में ऐसी रोमांचक यात्राएँ, खोजपूर्ण यात्राएँ मिल जाएँगी। किंतु उनमें से कुछ ही ऐसी यात्राओं को पढ़कर अपनी याददाश्त में हम जिंदा रख पाते हैं, जो वास्तव में रोचक होने के साथ ही तथ्यपूर्ण और विशेष रूप से गुँथी हुई होती हैं। ऐसी ही एक यात्रा- गुलिवर इन लिलिपुट को सभी जानते होंगे। अगर गुलिवर इन लिलिपुट की तुलना राहुल सांकृत्यायन के निराले हीरे की खोज से की जाए तो इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि हिंदी में लिखी हुई यह बहुत महत्वपूर्ण, रोचक, ज्ञानवर्द्धक और साहसिक यात्रा-कथा है।
डॉ. राहुल मिश्र